हर मनखे के मन म सकारात्मक-नकारात्मक, सुभ-असुभ भाव होथे। मन के ये सुभ-असुभ बिचार हर समय पा के अभिव्यक्त होथे। जब परिवेस बने रहिथे तब बानी ले बने-बने बात निकलथे अउ जब परिवेस हर बने नइ राहय तब मुँहू ले असुभ अउ अपशब्द निकलथे। बानी ले शब्द के निकलना अपनेआप म अन्तरभाव के परकटीकरन आय। अन्तरभाव के अभिव्यक्ति हर संस्कार अउ शिक्षा ले सरोकार रखथे। यदि ये बात के परतीत करना हे, त कोनो समाज के सामाजिकार्थिक दसा, शिक्षा के संगे-संग बिचार अभिव्यक्ति तरीका के अध्ययन करे जा सकत हे। मन के भाव अभिव्यक्ति के सोझे संबंध पारिवारिक व सामाजिक पृश्ठभूमि ले घलो होथे। जऊन हर जऊन वातावरन म रहिथे वो वातावरन के प्रचलित भासा ल सीखथे अउ ओहर ओ भासा ल बेवहार म लाथे। जम्मो मनखे अउ समाज के अपन भासा होथे । ओकर ओकरे ले पहिचान होथे। मनखे व्यक्तित्व के पहचान करना हे, तब ओकर भासा-बोली ले करे जा सकत हे।
‘गारी’ क्रोध के अभिव्यक्ति आय, तब ‘असीस’ प्रसन्नता के भाव। प्रसन्नता के भाव के शब्द अउ क्रोध म निकले शब्द म भावगत अउ भासागत अंतर देखे जा सकत हे। जब मनखे हर कोनो परिस्थिति म क्रोधित होथे, तब ओ परिस्थिति हर मनखे के मन ल अड़बड़ पीरा देथे अउ सुभाविक रूप ले अन्तर्भाव हर शब्द बन के बानी ले व्यक्त होथे। ओ परिस्थिति म बानी ले जऊन शब्द निकलथे वो हर ‘गारी’ बन जाथे। ये गारी के शब्द हर मनखे के मानसिक दसा, सामाजिक परिस्थिति, संस्कार अउ समाज म परचलित भासा के अभिव्यक्ति घलो होथे। भासा बिग्यानी का, आम मनखे हर घलो मनखे के बेवहार के भासा ल सुन के ओ मनखे के बारे म बता सकथे कि येकर शिक्षा अउ संस्कार कोन तरह ले होए हे।
छत्तीसगढ़ म परचलित ‘गारी’ के अलग-अलग रूप अउ अलग-अलग परकार देखे जा सकत हे। अलग-अलग समाज म अलग-अलग ढंग ले गारी के शब्द घलो देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ी म एकठन हाना हे-‘‘डार चुके बेंदरा, पाग चुके किसान अउ बात के चुके मनखे।’’ परिस्थिति के अनुकूल शब्द के प्रयोग नइ करना भी ‘गारी’ हो जाथे। छत्तीसगढ़ म परचलित गारी म भाव के व्यापकता हे। कोनो जगा सहज स्वीकार्य हे,तब कहीं जबर क्रोध के कारक। छत्तीसगढ़ के कइठन गारी हर अइसे तो सहज लागथे फेर जब ओकर बिस्लेसन करे जाय, तब बड़ा गंभीर अउ खराब अर्थ देथे। प्रचलित कुछ एक गारी ल हम बिस्लेसित कर देख सकथन। जइसे-गड़उना, तोला गाड़ंव, तोर खटिया रेंगे, तोला भूँजव, तोर मुरदा निकले, तोर नास होय, तोर सत्यानास होय, तोर मुँहू म आगी लागे, तोर मुँहू म किरा परे,चेलिक, रोगहा, जुटहा, कुटना, भड़वा, नानजात, किरहा, किसबिन, तोर चूरी फूटे, नकटी, चरकट अइसने बहुत अकन अउ गारी हे।
‘‘गड़उना, तोला गाडव, तोर खटिया रेगे, तोला भूँजव, तोर मुरदा निकले, तोर नास होय, तोर सत्यानास होय, तोर मुँहू म आगी लगे।’’ ये गारी ला चिटिक बिचार के अन्तरभाव ल देखथन तब सोझे ‘मर जाय’ के सरापा लागथे। फेर ये गारी के भाव हर सबो परिस्थिति म एके अर्थ नइ दे। जब बूढ़ीदाई के नत्ता हर ठठ्ठा-दिल्लगी म कहिथे- चल ले गड़वना, बेर्रा तब ये सहज भाव होथे, तब वोहर मनखे ल खराब नइ लागे, हाँस के टाल देथे अउ जब इही गारी हर क्रोध के भाव म झगरा-झंझट म दे जाथे, तब बहुत गंभीर हो जाथे अउ मनखे हर मारे-काँटे म उतारू हो जाथे। ये गारी मन म सीधा नइ कहे गे हे कि ‘‘तँय मर जा।’’ फेर ये गारी म बिंबात्मक रूप म भाव के इही अभिव्यक्ति हावै। अइसने ऊपर लिखे अउ दूसर गारी ल देख सकत हो। ये गारी मन म कतिक अर्थ छिपे हे। अइसे तो छत्तीसगढ़ म बहुत अकन बिकलम-बिकलम गारी हे। जऊन सोझे अर्थ देथे, जेला सार्वजनिक रूप म नइ कहे जा सकय अउ फेर ये गारी ल सबो मनखे हर दे भी नइ सकय। गारी देना घलो मनखे के सुभाव अउ नाता-रिस्ता के अनुसार होथे।
छत्तीसगढ़ म नाती, बूढ़ा, बूढीदाई अउ दूसर ठठ्ठा-दिल्लगी के नाता-रिस्ता जइसे-देवर-भउजाई, सारी-सारा, भाँटोमन ले देवइया गारी के अलग सरूप अउ अलग मजा हे। ये गारी के अर्थ अलग ढ़ंग ले प्रतिबिंबित होथे। छत्तीसगढ़ म बहुत अकन गारी नाता-रिस्ता के अधार म बने हे। ये गारी ल आने मनखे ह नइ दे सकय। ये हर छत्तीसगढ के मरजाद आय। हम ये कह सकत हन कि गारी म भी संस्कार छिपे हे।
छत्तीसगढ़ म परचलित गारी के हर मनखे के शिक्षा, सामाजिक दसा, मनखे के सोच के संगे-संग क्षेत्र बिसेस ले परभावित दिखथे। ये हर कहूँ कठोर होथे त कहूँ कोमल। ये गारी के कुछ क्षेत्र के अनुसार बदलत दिखथे। क्षेत्र के अनुसार गारी म बिबिधता भी हे। छत्तीसगढ़ के प्रतिकात्मक गारी ल इहाँ सोच, शिक्षा, संस्कार अउ भासायी समृद्धता के रूप म भी देखे जा सकत हे। शिक्षा के अर्थ कोनो औपचारिक शिक्षा ले नइ होय। लोक-शिक्षा के तको मनखे के जिनगी म जबर परभाव रहिथे। अउ एकरे ले मनखे के संस्कार बनथे।
–बलदाऊ राम साहू
ये आलेख हमला श्री साहू जी ह गुरतुर गोठ म छपे ये पोस्ट ल पढ़े के बाद भेजें हें। आप मन घलव ये आलेख ल पढ़े के संगें-संग ये पोस्ट ल तको पढ़ लव ..